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उजडे़ रेगिस्तान का हरा - भरा पेड़ हैं यह संत |
उजडे़ रेगिस्तान का हरा - भरा पेड़ हैं यह संत |
संयम व्रतों के रथ पर सवार, मिथ्या दृष्टि से परे समाज का गौरव हैं यह संत |
जन - जन के दिलों को प्यारा प्रसन्नता का प्रकाश हैं यह संत |
आखिर; भारत का गौरव " भारत गौरव " हैं यह संत |
सुख - सिंधु सागर का प्रदाता है यह संत |
अनुपम, आलौकिक, कठोर साधना की जड़ है यह संत |
वितरागता का पालन करतें हुए ;महावीर के पथ पर प्रगतिशील है यह संत |
आखिर ; पुष्पदंत सागर की बगिया का, चहकता- महकता पुष्प हैं यह संत |
तप और मौन साधनाओं के अम्बर में डूबा है यह संत |
तो वही; " ज्ञान की गंगा " में खुशियों की बौछार करता है यह संत |
जिनशासन को समर्पित वात्सल्य - धारा का धनी हैं यह संत |
निर्मल गंगा जल सा, निर्मल हैं यह संत |
समता रुपी गुणों सें धनी हैं यह संत |
अहंकार, वासना, ईर्ष्या से परे रहता हैं यह संत |
आखिर ;सम्यक्तवता का प्रतीक हैं यह संत |
अपने निराले अंतर्मन में डूबा रहता है यह संत |
मैत्री स्वभावों से परिपूर्ण " पुलक परिवार " का आदर्श हैं यह संत |
विजय तिलक की चमक हैं यह संत|
आखिर; मोक्ष पथ का गामी हैं यह संत |
28 मुलगुणों सें सुशोभित हैं यह संत |
बिन कांटों का खिलता गुलाब हैं यह संत |
चाँद-सी रोशनी,सूरज-सा दिव्य तेज,कोहिनूर जैसी चमक से परिपूर्ण हैं यह संत|
आखिर;जैनागम, माँ जिनवाणी का परम उपासक हैं यह संत |
गोपी देवी की आँखों का तारा, तो भीकमचंद जी के दिल का गुरूर हैं यह संत|
आखिर;जैनागम, माँ जिनवाणी का परम उपासक हैं यह संत |
गोपी देवी की आँखों का तारा, तो भीकमचंद जी के दिल का गुरूर हैं यह संत|
सुनी पड़ी कानपुर की धरती का, पुण्योदय हैं यह संत |
गाँव धमतरी वालों का गौरव कहूँ या ना कहूँ ; कोई फर्क नहीं पड़ता |
क्योंकि;मेरे महावीर की छाँव में पला - बढ़ा हैं यह संत |
प्रभु पार्श्वनाथ का दुलारा हैं यह संत |
आचार्य पुष्पदंतसागर जी को अतिप्रिय हैं यह संत |
अपने भक्तों के दिल में जगी आखिरी उम्मीद की किरण हैं यह संत |
आखिर ; दया - सिंधु का सागर हैं यह संत |
संयम - साधनाओं में लीन रहता हैं यह संत |
अपने भक्तों की खुशियों की चाबी हैं यह संत |
गिरते हुए को सदैव संभाला हैं इन्होंने |
आखिर ; " जिनशरणं के छोटे बाबा " हैं यह संत |
||जय पुलक सागर, जय पुलक सागर, जय पुलक सागर ||
लेखक✍ : मयंक शाह, अजमेर
सम्पादक : रचना जैन, उर्वशी लोढ़ा
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