Thursday, December 20, 2018

दोस्ती : एक बंधन मुस्कुराहट का




खामोश -सा हों गया हूँ मैं उस पल, 
इसलिए नहीं की मौत सामने खड़ी हैं, 
बल्कि इसलिए मेरे दोस्त, क्योंकि;
तुमसे बिछड़ने की घडी करीब आ गई हैं |


कितने हसीन थे ना वो पल भी; जो हम कभी साथ मिलकर गुजारा करते थे ,
बिन कहें ही हम एक - दूजे के, सुख दु:ख के साथी बन जाया करते थे ,
लड़ाई - झगड़े भी ख़ूब, और खूब रुठे भी सहीं ,
पर अगले हीं पल हम, एक -दुसरे को मना भी लिया करते थे  | 

दिल तो हम सबका जैसे, एक साथ हीं धड़कता था ,
चोट एक को लगती थी, लेकिन दर्द का अहसास सबको भिगोता था ,
कितने हसीन थे ना वो पल भी जिंदगी के;
जहाँ दिन की शुरुआत तुम्हारे फोन से हुआ करती थी, 
जहाँ  GF - BF से ज्यादा ,अपने दोस्तों की फिक्र हुआ करती थी |

 लम्हा-लम्हा वक्त बदला, शायद ज़िंदगी भी बदलने लग गई ,
हम सब एक -दुसरे से बिन बोले हीं बिछड़ते चले गए ,
आज कोई यहाँ हैं, कोई वहाँ हैं, लेकिन एक जगह कोई नही ,
शायद दिल से बंधे रिश्तों के धागे, बस नामों में सिमट कर रह गए है |

पहले साथ बैठकर हम, कुछ किस्से-कहानियाँ साझा कर लिया करते थे ,
लेकिन अब फोन पर बात करें भी,हमें महीनों बित जाया करते हैं,
सब उलझे है हम अपने ही बनाये, रिती - रिवाजो़ के ताने-बाने में कुछ युँ कि,
अपने हीं बुने पुराने रिश्तों के जज़्बातों को, हम खुद हीं दफ़नाते जा रहें हैं |

हम सब युँ बदल जाँएगें, किसी ने सोचा न था ,
मजबुरियों के चलते युँ जुदा होना पड़ेगा, किसी को अंदाजा भी न था,
किसी मायाजाल सा मोह हैं मुझे तुम सबके साथ ; 
सच कहुँ तो शायद इसी वजह से अब, तुम्हारे बिना मन भी नहीं लगता मेरा ,
और इस बंधन को कब तोड के मुक्त हों जाऊ, कुछ कह भी नहीं सकता |

लगता हैं मेरे दिल की धड़कने कुछ बढने लगी हैं ,
सामने खड़ी मौत मुझे देखकर हसँते हीं जा रहीं हैं ,
गुमां है उसे  खुद पर कि ,शायद मैं उसे देखकर रो दूं,
पर इसके साथ तो मैं वहाँ भी, मुस्कुराता हुआ हीं जाऊँगा दोस्त,
क्योंकि  तुम सबकी यादें मैने, अपने दिल के पन्नों में जो समेट ली है.........


©️ 

Sunday, December 9, 2018

शांतिदूत संत : पुलक सागर

(For Better Experience,View In Web Version)

उजडे़ रेगिस्तान का हरा - भरा पेड़ हैं यह संत |
संयम व्रतों के रथ पर सवार,  मिथ्या दृष्टि से परे  समाज का गौरव  हैं यह संत |
जन - जन के दिलों को प्यारा प्रसन्नता का प्रकाश  हैं यह संत |
आखिर; भारत का गौरव " भारत गौरव " हैं  यह संत |

सुख - सिंधु सागर का प्रदाता है यह संत |
अनुपम,  आलौकिक,  कठोर साधना की जड़ है  यह संत  |
वितरागता  का पालन करतें हुए ;महावीर के पथ पर प्रगतिशील  है यह संत |
आखिर ; पुष्पदंत सागर की बगिया का, चहकता-  महकता पुष्प हैं यह संत |

तप और मौन साधनाओं के अम्बर में डूबा है यह  संत  |
तो वही; "  ज्ञान की गंगा " में खुशियों  की बौछार करता है यह संत |
जिनशासन को समर्पित वात्सल्य - धारा का धनी हैं यह संत |
आखिर ; जैन समाज का उगता प्रकाश रूपी सूर्य हैं यह संत|

निर्मल गंगा जल सा, निर्मल हैं यह संत |
समता रुपी गुणों सें धनी हैं यह संत |
अहंकार, वासना, ईर्ष्या से परे रहता हैं यह संत |
आखिर ;सम्यक्तवता का प्रतीक हैं यह संत |

अपने निराले अंतर्मन में डूबा रहता है यह संत |
मैत्री स्वभावों से परिपूर्ण " पुलक परिवार " का आदर्श हैं यह संत |
विजय तिलक की चमक हैं यह संत|
आखिर; मोक्ष पथ का गामी हैं यह संत |

28 मुलगुणों सें सुशोभित हैं यह संत  |
बिन कांटों का खिलता गुलाब हैं यह संत |
चाँद-सी रोशनी,सूरज-सा दिव्य तेज,कोहिनूर जैसी चमक से परिपूर्ण हैं यह संत|
आखिर;जैनागम, माँ जिनवाणी का परम उपासक हैं यह संत |

गोपी देवी की आँखों का तारा, तो भीकमचंद जी के दिल का गुरूर हैं यह संत|
सुनी पड़ी कानपुर की धरती का, पुण्योदय हैं  यह संत |
गाँव धमतरी वालों का गौरव कहूँ या ना कहूँ ; कोई फर्क नहीं पड़ता |
क्योंकि;मेरे महावीर की छाँव में पला - बढ़ा हैं यह संत |

प्रभु पार्श्वनाथ का दुलारा हैं यह संत |
आचार्य पुष्पदंतसागर जी को अतिप्रिय हैं यह  संत |
अपने भक्तों के दिल में जगी आखिरी उम्मीद की किरण हैं यह संत |
आखिर ; दया - सिंधु का सागर हैं यह संत |

संयम - साधनाओं में लीन रहता हैं यह संत |
अपने भक्तों की खुशियों की चाबी हैं यह संत |
गिरते हुए को सदैव संभाला हैं इन्होंने |
आखिर ; " जिनशरणं के छोटे बाबा " हैं यह संत |

||जय पुलक सागर, जय पुलक सागर, जय पुलक सागर ||
©

  नमनकर्ता   : अंकित नम्रता जैन,पुलक पुस्तक मार्ट , 
                    मीरेश बुक्स गैलरी, अजमेर 
                    (ट्रस्टी -जिनशरणं तीर्थ) 

 लेखक   :  मयंक शाह, अजमेर 

सम्पादक    :  रचना जैन, उर्वशी लोढ़ा