खामोश -सा हों गया हूँ मैं उस पल,
इसलिए नहीं की मौत सामने खड़ी हैं,
बल्कि इसलिए मेरे दोस्त, क्योंकि;
तुमसे बिछड़ने की घडी करीब आ गई हैं |
कितने हसीन थे ना वो पल भी; जो हम कभी साथ मिलकर गुजारा करते थे ,
बिन कहें ही हम एक - दूजे के, सुख दु:ख के साथी बन जाया करते थे ,
लड़ाई - झगड़े भी ख़ूब, और खूब रुठे भी सहीं ,
पर अगले हीं पल हम, एक -दुसरे को मना भी लिया करते थे |
दिल तो हम सबका जैसे, एक साथ हीं धड़कता था ,
चोट एक को लगती थी, लेकिन दर्द का अहसास सबको भिगोता था ,
कितने हसीन थे ना वो पल भी जिंदगी के;
जहाँ दिन की शुरुआत तुम्हारे फोन से हुआ करती थी,
जहाँ GF - BF से ज्यादा ,अपने दोस्तों की फिक्र हुआ करती थी |
लम्हा-लम्हा वक्त बदला, शायद ज़िंदगी भी बदलने लग गई ,
हम सब एक -दुसरे से बिन बोले हीं बिछड़ते चले गए ,
आज कोई यहाँ हैं, कोई वहाँ हैं, लेकिन एक जगह कोई नही ,
शायद दिल से बंधे रिश्तों के धागे, बस नामों में सिमट कर रह गए है |
पहले साथ बैठकर हम, कुछ किस्से-कहानियाँ साझा कर लिया करते थे ,
लेकिन अब फोन पर बात करें भी,हमें महीनों बित जाया करते हैं,
सब उलझे है हम अपने ही बनाये, रिती - रिवाजो़ के ताने-बाने में कुछ युँ कि,
अपने हीं बुने पुराने रिश्तों के जज़्बातों को, हम खुद हीं दफ़नाते जा रहें हैं |
हम सब युँ बदल जाँएगें, किसी ने सोचा न था ,
मजबुरियों के चलते युँ जुदा होना पड़ेगा, किसी को अंदाजा भी न था,
किसी मायाजाल सा मोह हैं मुझे तुम सबके साथ ;
सच कहुँ तो शायद इसी वजह से अब, तुम्हारे बिना मन भी नहीं लगता मेरा ,
और इस बंधन को कब तोड के मुक्त हों जाऊ, कुछ कह भी नहीं सकता |
लगता हैं मेरे दिल की धड़कने कुछ बढने लगी हैं ,
सामने खड़ी मौत मुझे देखकर हसँते हीं जा रहीं हैं ,
गुमां है उसे खुद पर कि ,शायद मैं उसे देखकर रो दूं,
पर इसके साथ तो मैं वहाँ भी, मुस्कुराता हुआ हीं जाऊँगा दोस्त,
क्योंकि तुम सबकी यादें मैने, अपने दिल के पन्नों में जो समेट ली है.........