Friday, December 11, 2020

हताशा

आगे बढ़ना भी कहाँ आसान होता हैं,
यहाँ हर वक्त गिरने का ड़र जो होता हैं ,
सफलता से मुलाकात के संघर्ष में;
लाख कोशिशें भी  कम पड़ जाती हैं मेरी,
फिर भी सफलता से मुलाकात नही होती मेरी |
जब भी गिर जाता हूँ मैं,आयने-सा बिख़र जाता हूँ,
अपने अनगिनत प्रयासों को मैं फिर से खो देता हूँ,
मायूस सा हो कर  कभी-कभी थोड़ा सा रो भी लेता हूँ ,
मंज़िल को पाने का जज़्बा मैं फिर भी नहीं खोता हूँ|
उस नन्हीं -सी चिटीं को देखकर मैं फिर से खड़ा होता हूँ,
मंज़िल को पाने के लिए मैं फिर से प्रयत्नशील हो उठता हूँ ,
प्रयासों मे कमी मैं कभी आने नहीं दूँगा ,
लक्ष्य को प्राप्त करे बिना मैं शांत नहीं बैठुंगा;
बस ये बात ठान कर मैं फिर से आगे बढ जाता हूँ|
माना सफलता युँ  हीं हर किसी को नही मिलती ,
रातों को बिना सुलाये कई बार, कई मुलाकाते अधूरी रखनी पड़ती हैं,
अंगारो की राहो पर चलकर  सपनों की खूबसूरत राहें बनाना आसान नहीं होता,
ज़िंदगी में एक बार में सफल हों जाना शायद मुमकिन ना हो  ;
पर मैं खुद से ही हार कर बैठ जाँऊ ये भी तो मुमकिन नहीं ना |
*हताशा* की किरणो से रूबरू होना भी जरूरी हैं,
ज़िंदगी को रोचक बनाने के लिए कभी - कभी गिरना भी जरूरी हैं,
गिर - गिर कर भी जो खड़ा हो जाए, वो कभी असफल नहीं होता,
और ; आँसुओं को मुकद्दर समझ कर जीने वाला कभी सफल नही होता |
@highongoals

मुझे घर याद आता हैं....

मुझे घर याद आता हैं....

जहाँ मैं छोटे से बड़ा हुआ,
जहाँ ज़िंदगी के 18 बरस गुजारे,
वो आँगन जहाँ से मैने आगे बढ़ना सिखा ...
आज बहुत याद आता है,
हाँ, आज मुझे मेरा घर याद आता हैं |

वो घर जहाँ मुझे मिला माँ का प्यार,पापा की प्यार वाली पडी मार,
वो घर जहाँ भाई-बहनों के साथ खूब झगड़ना,रूठना-मनाना हुआ मेरा,
वो घर जहाँ हर शाम यारों की महफिलों का सजना हुआ,
आज बहुत याद आता है,
हाँ, आज मुझे मेरा घर याद आता हैं |

लेकिन मैं आज पीछे छोड़ आया अपनों को,
मेरे अपनो के सपनों को पूरा करने के खातिर
माँ-पापा से मीलों दूर,
अनजान शहर में अनजानी मंज़िल की तलाश में चला आया हूँ,
सपनों को पुरा करने का जोश कुछ ऐसा चढ़ा है कि,
अब इस अनजाने से शहर में कभी-कभी फुटपाथ पर भी लेट जाता हूँ,
जमाने की इस दौड़ में,मैं अपने घर से दुर चला आया हूँ |


दफ्तर जाते वक्त माँ के हाथ का बना वो खाना रोज याद आता हैं ,
वो बनी गरम-गरम घी की रोटी आज भी याद आती हैं,
खाना तो मैं आज भी खा लेता हूँ माँ,लेकिन उसमें वो मिठास नहीं आती है,
इसीलिए माँ तेरे हाथों की वो खुशबु मुझे रोज याद आती हैं,
हाँ, मुझे आज भी मेरा घर याद आता हैं |

वो घर तक जाने वाली गलियाँ,वो रास्ते आज भी याद आते हैं मुझे,
वो मस्ती भरे दिन आज भी बुलाते है मुझे,
वो घर की चारदीवारी के भीतर और उस आंगन में बिताए पल; हर वक्त मुझे याद आते हैं,
लेकिन क्या करूँ,अपने भविष्य को सँवारने के लिए,
 मैं आज सब कुछ पीछे छोड़ आया हूँ ....
हाँ ,मैं घर से दुर चला आया हूँ |

वो घर जहाँ सब लोग अपने थे,पराया कोई नही,
वो घर जहाँ हर त्योहार हम मिलझुल कर मनाया करते थे,
वो घर मुझे आज भी याद आता हैं;
जब इस अनजान शहर की गलियों में,मैं अपनों की तलाश करने के लिए निकलता हूँ,
जब अपने दोस्तों के बीच अपने उस प्यारे से बचपन को याद करता हूँ....
हाँ, मैं घर से दुर चला आया हूँ,

इसीलिए, मुझे आज भी मेरा वो घर बहुत याद आता हैं |
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